जो लोग कहते हैं ज्योतिबा फुले का क्या योगदान है इस देश में जानने के लिए पड़े पूरी खबर। दलित वर्ग और महिलाएं के लिए तो आज ही हमारे देश में क्रूरता की दृष्टि से देखा जाता है वहीं पर ज्योतिबा खुले द्वारा भारत का प्रथम स्कूल खोला गया था दलित वर्ग और महिलाओं को शिक्षित करने का संकल्प
शिक्षा की देवी कहीं जाने वाली सावित्रीबाई फुले का महिलाओं के लिए प्रथम स्कूलजर्जर हालत में देश का वो पहला बालिका स्कूल, जिसे सावित्रीबाई फुले ने बनवाया था
आजादी से पहले जब गिनी चुनी महिलाएं ही पढ़ाई कर पाती थीं, उस जमाने में गरीब तबके की महिलाओं को पढ़ाकर सशक्त बनाने के मकसद से ये स्कूल स्थापित किया गया था. इस स्कूल को राष्ट्रीय स्मारक बनाने की मांग भी उठी. लेकिन आज इसकी हालत दयनीय है.
महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को
सतारा महाराष्ट्र में हुआ था उनके पिता का नाम गोविंद राव वा माता का नाम चिमणाबाई था उनके पूर्वज्या जीवन यापन हेतु फुल बेचा करते थे ज्योतिवा के जन्म के 1 वर्ष बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया बच्चों का भविष्य देखते हुए उनके पिता ने पुनर्ह विवाह नहीं किया वह स्वयं उनके लालन पालन में रुचि ली ज्योतिबा फुले बुद्धिमान बालक थे लोगों ने गोविंद राव से उन्हें विद्यालय में भर्ती करने को कहा ज्योतिबा भी विद्यालय जाने को उत्सुक थे उन दिनों पूरी पुणे में एक ही विद्यालय था जिसकी स्थापना तत्कालीन कलेक्टर रॉबर्टसन ने की थी इसी विद्यालय में ज्योतिबा की प्रारंभिक शिक्षा पूरी हुई उन्होंने महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिए अनेक कार्य किया महात्मा ज्योतिबा फुले की मृत्यु 28 नवंबर 1890 को पुणे में हुई।
ज्योतिबा फुले के समाज सुधारक कार्य।
दलितो और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा सत्यबोधन समाज नामक संस्था को स्थापित किया उनकी समाज सेवा देखकर 1888 में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्होंने महात्मा की उपाधि दी गई ज्योतिबा ने ब्राह्मण पुरोहितों की बिनाही विवाह संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली वे बाल विवाह विरोधी और विधवा विवाह के समर्थक थे।
इनका सबसे महत्वपूर्ण कार्य महिलाओं की शिक्षा के लिए था अपनी कल्पनाओं और आकांक्षाओं का न्याय संगत और एक समान समाज बनाने के लिए 1848 में ज्योतिबा ने लड़कियों के लिए विद्यालय की स्थापना की थी यह लड़कियों के लिए देश का पहला विद्यालय था उनकी पत्नी सावित्रीबाई वहां अध्ययन करती थी लेकिन लड़कियों को शिक्षित करना उस समय कठिन कार्य था उस समय ज्योतिबा को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा ज्योतिबा ने मनुस्मृति के आ सामाजिक सिद्धांतों का खंडन किया।
उन्होंने समाज के निम्न वर्गों को ललकार पूर्वक संबोधित किया और कहा मेरा अनुसरण करो शिक्षा तुमको आनंद देवी ज्योतिबा तुमसे विश्वास पूर्वक कहता है ज्योतिबा फुले ने अपना धर्म परिवर्तन नहीं किया उनका मानना था कि हिंदू धर्म में रहकर ही उसकी कुर्तियां को दूर किया जा सकता है और उसका स्वरूप बदला जा सकता है।
ज्योतिबा महाराष्ट्र के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने शिवाजी के पराक्रम साहस और कुशलता पर गीत लिखिए उन्होंने शिवाजी के महान आदर्श का वर्णन किया 15 वर्ष के लगातार संघर्ष के पश्चात ज्योतिबा ने अनुभव किया कि उनके विचार सिद्धांतों एवं आदर्श के लिए एक ऐसे मंच और संस्था की आवश्यकता है ।जिसके मध्य से छोटे वर्गों को समाज के सामान्य धरातल पर जाने के लिए भरपूर प्रयास किया जाए इसी बात को ध्यान में रखते हुए ज्योतिबा ने सत्यवोdhak समाज नामक संस्था की स्थापना की थी ज्योतिबा फुले ने 1874 में गुलामगिरी नमक हिंदी पुस्तक की रचना की जिसमें उन्होंने समाज में फैली अनेक कुर्तियां का वर्णन किया है।